एक महिला ने बताई अपनी आपबीती।
एक मीटिंग के बाद मैं होटल से बाहर आई। मैंने अपनी कार की चाबियाँ तलाशीं लेकिन मेरे पास नहीं थीं। वापस मीटिंग रूम में जाकर देखा, वहाँ भी नहीं थीं।
अचानक मुझे लगा कि, चाबियाँ शायद मैं कार के इग्नीशन में ही लगी छोड़ आई थी। मेरे पति बहुत बार मेरी इस आदत के लिए मुझे डाँट चुके थे।
जबकि मेरा कहना ये होता था कि, चाबियों को कहीं और भूल जाने की अपेक्षा, इग्नीशन में लगी छोड़कर भूल जाना अच्छा।
उनका कहना ये होता था कि, इग्नीशन में चाबियाँ भूलने पर गाड़ी चोरी हो सकती है।
खैर, जब मैं पार्किंग में पहुँची तो मुझे समझ आया कि, मेरे पति सही थे। पार्किंग खाली थी, कार चोरी हो चुकी थी।
मैंने तुरंत पुलिस को कॉल किया, अपनी लोकेशन और पार्किंग एड्रेस बताया और कार की पूरी जानकारी दी।
मैं बराबर कन्फ्यूज थी कि, चाबियाँ इग्नीशन में भूल जाने के कारण ही कार चोरी हो गई थी।
फिर मैंने अपने पति को डरते डरते काल लगाईं और बोली---" डार्लिंग ( ऐंसे समय मैं उन्हें डार्लिंग कहकर ही बुलाती थी ) मैं अपनी कार की चाबियाँ इग्नीशन में भूल गई और अपनी कार चोरी हो गई। "
फोन पर थोड़ी देर शान्ति रही। मुझे लगा मेरे पति गुस्से में फोन काट देंगे। लेकिन फिर उनकी गुस्से में चिल्लाने की आवाज आई---" बेवकूफ,, मैं खुद तुम्हे मीटिंग अटेंड करने के लिए होटल छोड़कर आया था ! "
अब शांत रहने की मेरी बारी थी। मैं खुश हो गई थी कि, चलो कार चोरी तो नहीं हुई। फिर मैंने कहा---" ओके, तो फिर प्लीज, मुझे लेने के लिए आ जाओ। "
पति फिर चिल्लाए---" मैं जितनी जल्दी हो सकेगा, तुम्हें लेने के लिए पहुँचता हूँ, लेकिन पहले इस पुलिस वाले को तो बताओ, कि मैंने तुम्हारी कार नहीं चुराई है, जिसने मुझे पकड़ रखा है...."
अकेले मत हँसिए........दुसरे पति पत्नियों को फारवर्ड कीजिये,
पैदल वापस घर आ रहा था ।
रास्ते में एक बिजली खंभे में एक कागज लगा हुआ था ।
'कृपया पढ़ें' ऐसा लिखा था ।
फुरसत में था ही,
पास जाकर देखा - "इस रास्ते पर मैंने कल एक ₹50 का नोट गंवा दिया है । मुझे ठीक से दिखाई नहीं देता । जिसे भी मिले कृपया इस पते पर दे सकते हैं ।" ...
यह पढ़कर पता नहीं क्यों उस पते पर जाने की इच्छा हुई । पता याद रखा । यह उस गली के आखिरी में एक झुग्गी झोपड़ी का है ।
वहाँ जाकर आवाज लगाया तो एक वृद्धा लाठी के सहारे धीरे-धीरे बाहर आई । मुझे मालूम हुआ कि वह अकेली रहती है । उसे ठीक से दिखाई नहीं देता ।
"माँ जी", मैंने कहा - "आपका खोया हुआ ₹50 मुझे मिला है उसे देने आया हूँ ।"
यह सुन वह वृद्धा रोने लगी ।
"बेटा, अभी तक करीब 50-60 व्यक्ति मुझे 50-50 ₹ दे चुके हैं । मै पढ़ी-लिखी नहीं हूँ, ।
ठीक से दिखाई नहीं देता ।
पता नहीं कौन मेरी इस हालात को देख मेरी मदद करने के उद्देश्य से लिखा है ।"
बहुत ही कहने पर माँ जी ने पैसे तो रख ली ।
पर एक विनती की - ' बेटा, वह मैंने नहीं लिखा है । किसी ने मुझ पर तरस खाकर लिखा होगा । जाते-जाते उसे फाड़कर फेंक देना बेटा ।'
मैनें तो उसे हाँ कहकर टाल तो दिया पर मेरी अंतरात्मा ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया कि
। उन 50-60 लोगों से भी माँ ने यही कहा होगा । किसी ने भी नहीं फाड़ा । मेरा हृदय उस व्यक्ति के प्रति कृतज्ञता से भर गया ।
जो इस वृद्धा की सेवा का उपाय ढूँढा । सहायता के तो बहुत से मार्ग हैं , पर इस तरह की सेवा मेरे हृदय को छू गई ।
उस अकेली वृद्धा की जिंदगी के लिए इससे अच्छा कोई उपाय नहीं है ।
मैंने उस कागज को फाड़ा नहीं ।
आप ही बताइये आप अगर ऐसी परिस्थिति का सामना करते तो क्या करते ।
एक मीटिंग के बाद मैं होटल से बाहर आई। मैंने अपनी कार की चाबियाँ तलाशीं लेकिन मेरे पास नहीं थीं। वापस मीटिंग रूम में जाकर देखा, वहाँ भी नहीं थीं।
अचानक मुझे लगा कि, चाबियाँ शायद मैं कार के इग्नीशन में ही लगी छोड़ आई थी। मेरे पति बहुत बार मेरी इस आदत के लिए मुझे डाँट चुके थे।
जबकि मेरा कहना ये होता था कि, चाबियों को कहीं और भूल जाने की अपेक्षा, इग्नीशन में लगी छोड़कर भूल जाना अच्छा।
उनका कहना ये होता था कि, इग्नीशन में चाबियाँ भूलने पर गाड़ी चोरी हो सकती है।
खैर, जब मैं पार्किंग में पहुँची तो मुझे समझ आया कि, मेरे पति सही थे। पार्किंग खाली थी, कार चोरी हो चुकी थी।
मैंने तुरंत पुलिस को कॉल किया, अपनी लोकेशन और पार्किंग एड्रेस बताया और कार की पूरी जानकारी दी।
मैं बराबर कन्फ्यूज थी कि, चाबियाँ इग्नीशन में भूल जाने के कारण ही कार चोरी हो गई थी।
फिर मैंने अपने पति को डरते डरते काल लगाईं और बोली---" डार्लिंग ( ऐंसे समय मैं उन्हें डार्लिंग कहकर ही बुलाती थी ) मैं अपनी कार की चाबियाँ इग्नीशन में भूल गई और अपनी कार चोरी हो गई। "
फोन पर थोड़ी देर शान्ति रही। मुझे लगा मेरे पति गुस्से में फोन काट देंगे। लेकिन फिर उनकी गुस्से में चिल्लाने की आवाज आई---" बेवकूफ,, मैं खुद तुम्हे मीटिंग अटेंड करने के लिए होटल छोड़कर आया था ! "
अब शांत रहने की मेरी बारी थी। मैं खुश हो गई थी कि, चलो कार चोरी तो नहीं हुई। फिर मैंने कहा---" ओके, तो फिर प्लीज, मुझे लेने के लिए आ जाओ। "
पति फिर चिल्लाए---" मैं जितनी जल्दी हो सकेगा, तुम्हें लेने के लिए पहुँचता हूँ, लेकिन पहले इस पुलिस वाले को तो बताओ, कि मैंने तुम्हारी कार नहीं चुराई है, जिसने मुझे पकड़ रखा है...."
अकेले मत हँसिए........दुसरे पति पत्नियों को फारवर्ड कीजिये,
पैदल वापस घर आ रहा था ।
रास्ते में एक बिजली खंभे में एक कागज लगा हुआ था ।
'कृपया पढ़ें' ऐसा लिखा था ।
फुरसत में था ही,
पास जाकर देखा - "इस रास्ते पर मैंने कल एक ₹50 का नोट गंवा दिया है । मुझे ठीक से दिखाई नहीं देता । जिसे भी मिले कृपया इस पते पर दे सकते हैं ।" ...
यह पढ़कर पता नहीं क्यों उस पते पर जाने की इच्छा हुई । पता याद रखा । यह उस गली के आखिरी में एक झुग्गी झोपड़ी का है ।
वहाँ जाकर आवाज लगाया तो एक वृद्धा लाठी के सहारे धीरे-धीरे बाहर आई । मुझे मालूम हुआ कि वह अकेली रहती है । उसे ठीक से दिखाई नहीं देता ।
"माँ जी", मैंने कहा - "आपका खोया हुआ ₹50 मुझे मिला है उसे देने आया हूँ ।"
यह सुन वह वृद्धा रोने लगी ।
"बेटा, अभी तक करीब 50-60 व्यक्ति मुझे 50-50 ₹ दे चुके हैं । मै पढ़ी-लिखी नहीं हूँ, ।
ठीक से दिखाई नहीं देता ।
पता नहीं कौन मेरी इस हालात को देख मेरी मदद करने के उद्देश्य से लिखा है ।"
बहुत ही कहने पर माँ जी ने पैसे तो रख ली ।
पर एक विनती की - ' बेटा, वह मैंने नहीं लिखा है । किसी ने मुझ पर तरस खाकर लिखा होगा । जाते-जाते उसे फाड़कर फेंक देना बेटा ।'
मैनें तो उसे हाँ कहकर टाल तो दिया पर मेरी अंतरात्मा ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया कि
। उन 50-60 लोगों से भी माँ ने यही कहा होगा । किसी ने भी नहीं फाड़ा । मेरा हृदय उस व्यक्ति के प्रति कृतज्ञता से भर गया ।
जो इस वृद्धा की सेवा का उपाय ढूँढा । सहायता के तो बहुत से मार्ग हैं , पर इस तरह की सेवा मेरे हृदय को छू गई ।
उस अकेली वृद्धा की जिंदगी के लिए इससे अच्छा कोई उपाय नहीं है ।
मैंने उस कागज को फाड़ा नहीं ।
आप ही बताइये आप अगर ऐसी परिस्थिति का सामना करते तो क्या करते ।
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